कला के नाम पर कुछ भी परोस देना और कहना कि मैं तो कलाकार हूं सिर्फ गाने बजाने से मतलब है , मुझे समाज और संस्कृति से क्या लेना देना। किसी कलाकार द्वारा प्रस्तुत यह निहायत ही घटिया विचार है । कोई भी कलाकार अपने समय के समाज और संस्कृति से अलग सिर्फ कलावादी होकर अपनी कला का प्रदर्शन करे तो उसे आने वाला समय सिर्फ भुला ही नहीं देगा बल्कि कभी गलती से याद भी करेगा तो शर्मिंदा होगा। उसे कोसेगा। निश्चित रूप से कला की पहली शर्त मनोरंजन करना एवं दर्शकों और श्रोताओं के हृदय में आनंद की अनुभूति कराना है ।

लेकिन उसका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन करना नहीं होता है । एक बेहतर समाज के निर्माण में कला और संगीत की बड़ी भूमिका है। बेहतर समाज से मतलब ऐसे समाज से है जिसमें आपसी प्रेम और भाईचारा हो । स्त्रियों के प्रति आदर और सम्मान हो । धर्म जाति और लिंग के आधार पर किसी का शोषण ना हो । चारों तरफ उल्लास हो आनन्द हो । वर्तमान समय निराश करने वाला है । विशेष रूप से भोजपुरी लोक संगीत की बात करें तो स्थिति भयावह है। जिस तरीके से भोजपुरी लोक संगीत के नाम पर समाज में स्त्री विरोधी गीतों को भड़ैंती और फूहड़पन के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है चिंताजनक है । यह भी सत्य है कि जब – जब परिस्थितियां विपरीत होती हैं और लगता है कि अंधेरा घना है । कोई न कोई आगे आता है , मशाल जलाता है और अपने लोगों को रास्ता दिखाता है । भोजपुरी लोक संगीत के क्षेत्र में ऐसा ही एक नाम है शैलेंद्र मिश्र का । शैलेंद्र ने ना सिर्फ मशाल जलाया है बल्कि उस मशाल को आगे आगे लेकर चल भी रहे हैं । नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी कर रहे हैं ।‌ बचपन से ही लोक संगीत के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले शैलेंद्र मिश्र विगत 20 वर्षों से लगातार सक्रिय है मात्र 12 वर्ष की अवस्था में रेडियो स्टेशन से अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाले शैलेंद्र की लोक गायकी के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान बन चुकी है ।

इनकी गायकी में अपनी मिट्टी की सोंधी महक है जिंदादिली है , लोक का आख्यान है , साहित्य है । सफलता और असफलता से दूर शैलेंद्र को कभी बाजार ने अपने आगोश में नहीं लिया। लोक में प्रचलित धून जो अब विलुप्त होने के कागार पर हैं शैलेंद्र ने उन्हें जीवंत किया है । लोक गायकी के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मानित शैलेंद्र मिश्र को दो दर्जन से अधिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है । इस दौर में जबकि लगभग हर कलाकार बिकने को तैयार है शैलेंद्र मिश्र ने कभी समझौता नहीं किया , कभी बाजार के सामने घुटने नहीं टेके । अश्लीलता और फूहड़पन से दूर अपनी एक अलग लाइन खींचने वाले शैलेंद्र ने इस समाज को बेहतर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं । गायकी के अलावा लोक नाटक विदेसिया समेत दो दर्जनों नाटकों में संगीत निर्देशन किया है । इसके साथ बहुत सारी लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों में भी संगीत दिया है और पार्श्व गायन किया है। देश के महत्वपूर्ण संगीत समारोहों और आयोजनों में शैलेंद्र की दमदार उपस्थिति रही है । निश्चित रूप से भोजपुरिया समाज को शैलेंद्र की गायकी और उनकी प्रतिबद्धता पर गर्व होना चाहिए। जरूरी है कि समाज ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करें ।हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे प्रतिबद्ध कलाकारों को सहेज कर रखें । धारा के विपरित चलकर अपनी पहचाने बनाने वाले इस जीवट कलाकार के लिए एक सलामी तो बनती है है ।

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